क्या केंद्र सरकार की आर्थिक स्थिति इतनी बदतर हो गई है कि वह अपने एकमात्र चिड़ियाघर — दिल्ली चिड़ियाघर — का प्रबंधन अंबानी समूह के निजी चिड़ियाघर ग्रींस ज़ूलॉजिकल रेस्क्यू एंड रिहैबिलिटेशन सेंटर (Greens Zoological Rescue and Rehabilitation Centre – GZRRC), जिसे आम तौर पर वनतारा के नाम से जाना जाता है, को सौंपने की कवायद पूरी कर चुकी है? यह सवाल आज दिल्ली चिड़ियाघर का हर कर्मचारी पूछ रहा है, क्योंकि वनतारा की कई टीमें चिड़ियाघर में आकर विभिन्न प्रकार के सर्वेक्षण कर चुकी हैं।
दरअसल, दिल्ली चिड़ियाघर के निजीकरण की साजिश पिछले दो–तीन दशकों से चल रही है, लेकिन कर्मचारियों के विरोध के चलते अब तक यह योजना अमल में नहीं आ सकी थी। लगभग दो वर्ष पूर्व जब यह मुद्दा समाचार पत्रों में उठा और पूर्व पर्यावरण मंत्री श्री जयराम रमेश ने इस पर सवाल उठाया, तब मौजूदा पर्यावरण मंत्री श्री धर्मेंद्र यादव ने इसका स्पष्ट खंडन किया था। लेकिन अब जब राष्ट्रीय प्राणी उद्यान (दिल्ली चिड़ियाघर), वनतारा और गुजरात राज्य सरकार के बीच हुए समझौते की बात सामने आई है, तब से 178 एकड़ भूमि में फैले दिल्ली चिड़ियाघर के प्रबंधन को अंबानी समूह को सौंपने की आशंका को बल मिला है।
सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर प्रकाशित एक पोस्ट के अनुसार, दिल्ली में चिड़ियाघर की संकल्पना 1953 में की गई थी और 1 नवंबर 1959 को केंद्रीय मंत्री पंजाबराव देशमुख ने इसका उद्घाटन किया। पुराना किला के पास दलदली ज़मीन पर बने इस चिड़ियाघर के डिज़ाइन में श्रीलंका के मेजर वाइनमेन और पश्चिम जर्मनी के कार्ल हेगेनबेक की महत्वपूर्ण भूमिका रही। आज यह चिड़ियाघर लगभग 178 एकड़ में फैला है और इसमें 1200 से अधिक जानवरों की प्रजातियाँ मौजूद हैं।
उक्त पोस्ट के अनुसार, वनतारा जामनगर (गुजरात) में स्थित एक अत्याधुनिक वन्यजीव बचाव, पुनर्वास और संरक्षण केंद्र है, जिसे अनंत अंबानी ने रिलायंस फाउंडेशन के सहयोग से रिलायंस रिफाइनरी के ग्रीन बेल्ट क्षेत्र में विकसित किया है। यह केंद्र लगभग 3000 एकड़ (कुछ स्रोतों के अनुसार 3500 एकड़) में फैला हुआ है। उल्लेखनीय है कि इसी वनतारा पर देश और विदेश से कानूनी व गैर-कानूनी तरीकों से जंगली जानवरों को लाने के आरोप भी लगे हैं।
देश और राजधानी दिल्ली की जनता भलीभांति जानती है कि दिल्ली चिड़ियाघर की स्थापना सरकारी खजाने से हुई है, जो प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष करों से प्राप्त जनता की आय से बनता है। इस प्रकार, दिल्ली चिड़ियाघर की असली मालिक देश की जनता ही है। राष्ट्रीय राजधानी में एक सार्वजनिक चिड़ियाघर का होना इसलिए भी आवश्यक है क्योंकि कंक्रीट के जंगलों के बीच यह चिड़ियाघर दिल्ली के फेफड़ों का काम करता है। साथ ही, यह स्कूली बच्चों, युवाओं, अधेड़ और बुजुर्गों के लिए एक जीवंत वन्यजीव पुस्तकालय और स्वस्थ मनोरंजन का केंद्र भी है।
बर्ड फ्लू के कारण दिल्ली चिड़ियाघर 30 अगस्त 2025 से अब तक दर्शकों के लिए बंद है। लेकिन इसी दौरान कर्मचारियों की जान को जोखिम में डालकर वनतारा के तथाकथित विशेषज्ञों द्वारा प्रशिक्षण दिया गया, जिससे यह स्पष्ट होता है कि सरकारी और निजी प्रशासन की नज़र में कर्मचारियों की सुरक्षा कोई मायने नहीं रखती। आशंका जताई जा रही है कि चिड़ियाघर को दर्शकों के लिए जानबूझकर बंद किया गया ताकि इसी अवधि में उसका निजीकरण किया जा सके।
उल्लेखनीय है कि हाल ही में दिल्ली चिड़ियाघर के युवा अफ्रीकी हाथी शंकर, जिसकी देखरेख की जिम्मेदारी वनतारा को दी गई थी, की मृत्यु लापरवाही के कारण हो गई। दुख की बात है कि जिस संस्था की लापरवाही से हाथी की मौत हुई, उसी को अब दिल्ली चिड़ियाघर सौंपने की तैयारी की जा रही है। वर्तमान में देश में एकमात्र अफ्रीकी हाथी मैसूर के चिड़ियाघर में बचा है।
आज दिल्ली चिड़ियाघर में स्थायी कर्मचारियों की संख्या मात्र 107 रह गई है, जबकि स्वीकृत पद 207 हैं। एक समय यहाँ लगभग 350 स्थायी कर्मचारी कार्यरत थे। अब एक-एक कर्मचारी को दो-दो बीटों की जिम्मेदारी दी गई है, जिनमें प्रत्येक बीट में दो–तीन बाड़े हैं और उनमें कई जानवर रखे गए हैं। ऐसी स्थिति में जहाँ कर्मचारी काम के बोझ तले दबे हैं, वहीं केंद्र सरकार और चिड़ियाघर प्रशासन इसके निजीकरण की साजिश में लगे हुए हैं।
अंबानी समूह की नज़र दिल्ली चिड़ियाघर की 178 एकड़ भूमि पर है, जो अरबपतियों की कॉलोनी सुंदर नगर से सटी हुई है और राष्ट्रपति भवन, संसद भवन, इंडिया गेट आदि से कुछ ही दूरी पर स्थित है। देश की इतनी बेशकीमती सार्वजनिक संपत्ति को निजी हाथों में सौंपना शर्मनाक और खतरनाक है। यही कारण है कि दिल्ली चिड़ियाघर के कर्मचारी इसके निजीकरण का पुरज़ोर विरोध कर रहे हैं।
दिल्ली और आसपास की जनता का कर्तव्य है कि वे इस संघर्ष में कर्मचारियों का साथ दें, ताकि यह सार्वजनिक चिड़ियाघर बचाया जा सके।